“भीष्म-पंञ्चक” व्रत विशेष

“भीष्म-पंञ्चक” व्रत विशेष


08 नवम्बर 2019 शुक्रवार से 12 नवम्बर 2019 मंगलवार तक भीष्म पंचक व्रत है ।

कार्तिक शुक्ल पक्ष एकादशी से पूर्णिमा तक के पांच दिनों में व्रत को भीष्म पंचक कहा जाता है। कार्तिक स्नान करने वाली स्त्रियां और पुरुष इस व्रत को करते हैं। दरअसल महाभारत का युद्ध समाप्त होने पर जिस समय भीष्म पितामह सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा में शरशैया पर शयन कर रहे थे तब भगवान कृष्ण पांचों पांडवों को साथ लेकर उनके पास गए थे।

अग्नि-पुराण अध्याय – २०५

अग्निदेव कहते हैं – अब मैं सब कुछ देने वाले व्रतराज "भीष्म-पंञ्चक" के विषय में कहता हूँ। कार्तिक के शुक्ल पक्ष की एकादशी को यह व्रत ग्रहण करें, पाँच दिनों तक तीनों समय स्नान करके पाँच तिल और यवों के द्वारा देवता तथा पितरों का तर्पण करे, फिर मौन रहकर भगवान् श्री हरि का पूजन करे,देवाधिदेव श्री विष्णु को पंचगव्य और पंञ्चामृत से स्नान करावे और उनके श्री अंगों में चन्दन आदि सुंगन्धित द्रव्यों का आलेपन करके उनके सम्मुख घृतयुक्त (घी मिला) गुग्गुल जलावे ।।१-३।।

प्रात: काल और रात्रि के समय भगवान् श्री विष्णु को दीप-दान करे और उत्तम भोज्य-पदार्थ का नैवेद्ध (भोग) समर्पित करे, व्रती पुरुष " ॐ नमो भगवते वासुदेवाय " इस द्वादशाक्षर मन्त्र का एक सौ आठ (१०८) बार जप करे, तदन्तर घृतासक्त तिल और जौ का अंत में ‘स्वाहा’ से संयुक्त : "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय "– इस द्वादशाक्षर मन्त्र से हवन करे,पहले दिन भगवान् के चरणों का कमल के पुष्पों से, दुसरे दिन घुटनों और सक्थिभाग (दोनों ऊराओं) का बिल्वपत्रों से, तीसरे दिन नाभिका भृंगराज से, चौथे दिन बाणपुष्प, बिल्वपत्र और जपापुष्पों द्वारा एवं पाँचवे दिन मालती पुष्पों से सर्वांग का पूजन करे, व्रत करने वाले को भूमि पर शयन करना चाहिये ।

एकादशी को गोमय, द्वादशी को गोमूत्र, त्रयोदशी को दधि, चतुर्दशी को दुग्ध और अंतिम दिन पंचगव्य का आहार करे (खाए), पूर्णमासी को "नक्तव्रत" करना चाहिये, इस प्रकार व्रत करने वाला भोग और मोक्ष – दोनों को प्राप्त कर लेता है ।

एकादशी को गोमय, द्वादशी को गोमूत्र, त्रयोदशी को दधि, चतुर्दशी को दुग्ध और अंतिम दिन पंचगव्य का आहार करे (खाए), पूर्णमासी को "नक्तव्रत" करना चाहिये, इस प्रकार व्रत करने वाला भोग और मोक्ष – दोनों को प्राप्त कर लेता है ।

ब्रह्माजी ने भी इस व्रत का अनुष्ठान करके श्री हरि का पूजन किया था, इसलिये यह व्रत पाँच उपवास आदि से युक्त है ।।४-९।।

इस प्रकार आदि आग्नेय महापुराण में " भीष्म-पंञ्चक-व्रत का कथन " नामक दो सौ पाँचवाँ अध्याय पूरा हुआ ।।२०५।।

पंo उत्तम शास्त्री ज्योतिर्विद् 9891256226

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