‘प्रबोधिनी एकादशी’ विशेष

‘प्रबोधिनी एकादशी’ विशेष


आज है हरिबोधिनी एकादशी व्रत, तुलसी विवाह, चातुर्मास्य व्रत नियमादि समाप्त, भीष्म पंचक प्रारम्भ । देवउठनी हरि प्रबोधिनी एकादशी के दिन भगवान श्री लक्ष्मी-नारायण (विष्णु) की पूजा की जाती है।

इन मंत्रों से उठाना (जगाना) चाहिए ।

उतिष्ठ-उतिष्ठ गोविन्द, उतिष्ठ गरुड़ध्वज | उतिष्ठ कमलकांत, त्रैलोक्यं मंगलम कुरु ||

‘प्रबोधिनी एकादशी’ के दिन पुष्प, अगर, धूप आदि से भगवान की आराधना करनी चाहिए, भगवान को अर्ध्य देना चाहिए । इसका फल तीर्थ और दान आदि से करोड़ गुना अधिक होता है । जो गुलाब के पुष्प से, बकुल और अशोक के फूलों से, सफेद और लाल कनेर के फूलों से, दूर्वादल से, शमीपत्र से, चम्पकपुष्प से भगवान विष्णु की पूजा करते हैं, वे आवागमन के चक्र से छूट जाते हैं । इस प्रकार रात्रि में भगवान की पूजा करके प्रात:काल स्नान के पश्चात् भगवान की प्रार्थना करते हुए गुरु की पूजा करनी चाहिए और सदाचारी व पवित्र ब्राह्मणों को दक्षिणा देकर अपने व्रत को छोड़ना चाहिए ।

जो मनुष्य चातुर्मास्य व्रत में किसी वस्तु को त्याग देते हैं, उन्हें इस दिन से पुनः ग्रहण करनी चाहिए । जो मनुष्य ‘प्रबोधिनी एकादशी’ के दिन विधिपूर्वक व्रत करते हैं, उन्हें अनन्त सुख मिलता है और अंत में स्वर्ग को जाते हैं ।

पंo उत्तम शास्त्री ज्योतिर्विद् 9891256226

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